नेली ग्रे का जन्म 12 जनवरी, 1886, में केम्ब्रिज, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता का नाम फ़्रेडरिक विलियम ग्रे और माता ऐडिथ हेनेरिअता ग्रे थीं। उन्होंने इंग्लैंड से ही अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। जब चटगांव (बंगाल) के निवासी यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए तो वहीं पर 1909 में नेली से उनका विवाह हुआ। इसके बाद जब जतीन्द्र जी अपनी शिक्षा पूर्ण करके भारत वापस आये तो नेली भी उनके साथ यहीं आ गईं।
1921 के ‘असहयोग आन्दोलन’ में जब उनके पति यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त कूद पड़े तो नेली ने भी सुख-सुविधा का जीवन त्याग कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय कर लिया। असम-बंगाल की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त गिरफ्तार हुए तो उनके बाद नेली ने मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने खद्दर बेचने पर लगा प्रतिबंध तोड़ा, जिस कारण अंग्रेज़ पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया।
नेली सेनगुप्त का सबसे साहसपूर्ण कार्य था,1933 की कलकत्ता अब कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता। इस अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष महामना मदन मोहन मालवीय पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए थे। नेली कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने वाली तीसरी महिला थीं। उनके पूर्व यह पद ऐनी बेसेंट (1917) और सरोजिनी नायडू (1925) ने सुशोभित किया था। चुपचाप नेली को अध्यक्ष चुन लिया गया। ब्रिटिश सरकार अधिवेशन रोकने के लिए हर उपाय कर रही थी। जो स्वागताध्यक्ष बनाया जाता उसे गिरफ्तार कर लिया जाता, जो स्थान निर्धारित होता, उस पर पुलिस कब्ज़ा कर लेती। इस पर लोगों ने बिना विचार किये ‘इसप्लेनेड’ में अधिवेशन आयोजित किया और अध्यक्ष पद से नेली ने भाषण दिया। उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पति पहले से ही जेल में बन्द थे।
डॉक्टरों की राय पर वे अपनी पत्नी नेली सेनगुप्त के साथ अक्टूबर 1939 में इंग्लैंड गए। इंग्लैंड में वे अपने ससुराल गए। उनकी सास अपने दामाद व पुत्री को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्हें गर्व भी हुआ कि उनका दामाद भारत का राष्ट्रीय स्तर का नेता बन गया है और उनकी पुत्री ने राष्ट्रीय आंदोलन में डटकर हिस्सा लिया है।’ देशप्रिय यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त- कुशल शंकर ओझा (भारत के गौरव-नवाँ भाग)। नेली सेनगुप्त 1940 और 1946 में निर्विरोध ‘बंगाल असेम्बली’ की सदस्य चुनी गई थीं। 1947 के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और 1954 में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं।
भारत की आज़ादी में योगदान देने वाली नेली सेनगुप्त जब बहुत बीमार हुईं तो 23 अक्टूबर, 1973 में इलाज के लिए कलकत्ता अब कोलकाता आयीं, तभी उनका देहान्त हुआ।’नेली के निधन पर अक्टूबर 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री (अब स्व.) इंदिरा गाँधी ने कहा था, ‘इंग्लैंड में जन्म लेने के बावजूद, यह उनकी व्यक्तिगत निष्ठा, भारतीय समाज की सेवा और साहस का ही परिणाम था कि संकट के समय उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष जैसा जिम्मेदारी का पद दिया गया था।’ एजेन्सी।