भारत की भूमि पर अध्यात्म का जो बीज कभी चेतना, प्रश्न और अनुभव की भूमि में रोपा गया था, वह अब भीड़, बाजार और भ्रम की लताओं में उलझ चुका है। कैंची धाम और इसके संस्थापक नीम करौली बाबा इसका जीवित उदाहरण हैं। जहाँ एक तरफ जनता “बाबा का चमत्कार” कहकर आंखें मूंद लेती है, वहीं दूसरी तरफ यदि हम इस पूरे प्रकरण की दार्शनिक और सामाजिक समीक्षा करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सिर्फ एक धार्मिक भावना का नहीं, बल्कि विवेक के आत्मसमर्पण का क्षेत्र बन चुका है।
नीम करौली बाबा: एक आलोचनात्मक समीक्षा
नीम करौली बाबा के समर्थक उन्हें ‘जीवित हनुमान’, ‘अवतारी पुरुष’, और ‘साक्षात ईश्वर’ कहते हैं। लेकिन यह “अवतारवाद” स्वयं एक प्राचीन सामंती विचारधारा है, जो व्यक्ति की आलोचनात्मक चेतना को कुंद कर देता है। जो व्यक्ति न सोच पाए, न सवाल उठा पाए, और सिर्फ “बाबा की इच्छा” मानकर अपने जीवन की जिम्मेदारी छोड़ दे — वह भक्त नहीं, एक मानसिक रूप से गुलाम होता है।
नीम करौली बाबा की जीवनशैली, भाषा और कार्यप्रणाली को देखें —न कोई स्पष्ट दार्शनिक ग्रंथ,न कोई तार्किक शिक्षाशास्त्र,न कोई ऐतिहासिक प्रतिरोध का उदाहरण —
सिर्फ चमत्कार, आशीर्वाद, और भावनात्मक कथा!और यही “चमत्कारवाद” भारतीय समाज के बौद्धिक पतन की जड़ है।एक ऐसा व्यक्ति, जो “आपके नाम से पहले ही जान गया”, “बिना बताए प्रसाद दे दिया”, या “आपका कैंसर ठीक कर दिया”, ऐसी कहानियों से भरा हुआ एक नकली अध्यात्म खड़ा कर देता है, जहाँ विचार, तर्क और अनुभव की कोई ज़रूरत नहीं रहती।
कैंची धाम: पवित्रता या प्रबंधन आधारित भ्रम?
आज का कैंची धाम कोई आध्यात्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक VIP संरक्षित पर्यटन केंद्र बन गया है। प्रवेश के लिए पूर्व-पंजीकरण, सुरक्षा जांच, भीड़ नियंत्रण, सेलिब्रिटी दर्शन, पार्किंग शुल्क, और ‘बाबा की कृपा से विदेश यात्रा’ जैसे नारे – यह सब धर्म नहीं, बल्कि एक ब्रांडेड अंधविश्वास उद्योग है। क्या यह वही भारत है, जिसने उपनिषदों, बुद्ध, कबीर और रैदास जैसे आलोचनात्मक चिंतकों को जन्म दिया था? क्या यही वह संस्कृति है, जहाँ एक साधु की छवि के नाम पर जनता: अपना विवेक गिरवी रख दे,अपनी मेहनत की कमाई दान-पात्र में डाल दे,और फिर उम्मीद करे कि “बाबा अमेरिका भेज देंगे”?यह कोई आत्मज्ञान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक परजीविता है।
अमेरिकी भक्त, अमीरी के प्रतीक
नीम करौली बाबा की लोकप्रियता को स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग और हॉलीवुड भक्तों के नाम से वैधता दी जाती है।ये वही मानसिक औपनिवेशिकता है जिसमें हम अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता तब मानते हैं जब कोई अमीर गोरा विदेशी उसे प्रमाणित करे।यानी बाबा की महानता उनकी साधना या ज्ञान से नहीं, बल्कि विदेशी फैन फॉलोइंग से तय होती है।क्या यह अध्यात्म है, या आत्महीनता की भिक्षा?
निष्कर्ष: कैंची धाम और नीम करौली बाबा — आधुनिक भारत की चेतना पर हमला
नीम करौली बाबा और कैंची धाम उस आध्यात्मिक पतन का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ धर्म अब मुक्ति नहीं, भीड़ की गुलामी, विवेकहीन भक्ति, और बाजार की सजावट बन चुका है। उनका नाम लेकर जो संस्थान चल रहा है, वह व्यक्ति को यह नहीं सिखाता कि सोचो, समझो, संशय करो, बल्कि यह कहता है: “मत सोचो, बाबा सब देख रहे हैं। बस चढ़ावा चढ़ाओ और श्रद्धा रखो।”इससे बड़ा धोखा कोई नहीं।
अंतिम बात:
यदि भारत को आगे बढ़ना है, तो उसे बाबा नहीं, विवेक चाहिए।कैंची धाम जैसे स्थानों को तीर्थ नहीं, सांस्कृतिक समीक्षा के केंद्र बनाने की ज़रूरत है। तब जाकर भारत विचारों का देश बनेगा, न कि अंधविश्वास का उपभोक्ता बाज़ार।मयंक तारा