देश की सबसे पुरानी पार्टी और कभी जनता की सबसे ज्यादा चहेती रही पार्टी कांग्रेस के पास आज इतने भी लोकसभा सदस्य नहीं हैं कि उसे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा दिया जा सके। ऐसे हालात में राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पूर्व कांग्रेस के जितने भी अध्यक्ष रहे, उन सभी को मजबूत कांग्रेस मिली थी। यहां तक कि निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी की माता श्रीमती सोनिया गांधी ने भी जिस जर्जर कांग्रेस की बागडोर संभाली थी, तब भी उसके पास 141 लोकसभा के सदस्य थे और चार राज्यों में कांग्रेस की मजबूत सरकारें भी हुआ करती थीं जब 11 दिसम्बर 2017 को जब राहुल गांधी को कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया है तब कांग्रेस के पास सिर्फ 46 लोकसभा सदस्य हैं और पांच राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश में उसकी सरकार है। ऐसे कठिन समय में मिले ताज को कांटों का ताज ही कहा जाएगा। राहुल गांधी कांग्रेस की सबसे मुश्किल दशा में पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन हम पहले भी एक आलेख में बता चुके हैं कि राहुल की ताजपोशी का यही अनुकूल समय है क्योंकि दस साल के यूपीए सरकार के समय जब वे बहुत कुछ कर सकते थे, तब वे कोई ऐसा कार्य नहीं कर पाये जिसकी देश की जनता चर्चा करती लेकिन इस बार
प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गढ़ गुजरात में विधान सभा चुनाव में उन्होंने जिस तरह भाजपा को चुनौती दी है, उसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। गुजरात के नतीजे कुछ भी निकलें लेकिन कांग्रेस के एक नेता के रूप में राहुल गांधी ने परीक्षा पास ही कर ली है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस के पास एक गौरवशाली विरासत रही है। देश को आजाद कराने की मुहिम इसी राजनीतिक दल ने चलायी थी और लाला लाजपत राय से लेकर सुभाष चंद्रबोस तक इसी पार्टी के नेता हुआ करते थे। देश को आजादी मिलने के बाद भी दशकों तक इसी पार्टी का दबदबा रहा है। सन् 1947 में जब देश को आजादी मिली थी, उस समय कांग्रेस की बागडोर आचार्य जेबी कृपालानी संभाल रहे थे। उन दिनों कांग्रेस के संगठन का चुनाव भी लोकतांत्रिक तरीके से कराया जाता था। प्रति वर्ष चुनाव होता था। यह परम्परा आजादी से पहले से थी। सदस्यों को चुनाव करने में कितनी आजादी मिलती थी, इसका उदाहरण उस चुनाव से मिलता है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नहीं चाहते थे कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बनें लेकिन नेता जी चुनाव में शामिल हुए और कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुन लिये गये। महात्मा गांधी चाहते थे कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया जाए। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी की भावना का सम्मान करते हुए चुनाव में जीतने के बाद इस्तीफा दिया।
इस प्रकार लोकतंत्र बहुत समय तक चला। बाद में अध्यक्ष का कार्यकाल भी बढ़ाया गया। इस तरह आजादी के बाद प्रसिद्ध इतिहास कार पट्टाभि सीतारमैया को 1948 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। वे दो वर्ष तक अध्यक्ष रहे। उनके बाद प्रसिद्ध साहित्यकार पुरूषोत्तम दास टण्डन ने कांग्रेस की कमान संभाली और 1950 से 1951 तक वे अध्यक्ष रहे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री के साथ पहली बार 1951 में कांग्रेस संगठन की भी कमान संभाली थी और 1955 तक वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे। यही वह समय था जब चुनाव की जगह एक तरह से मनोनयन होने लगा जो आज कमोवेश सभी राजनीतिक दलों में हो रहा है। नेहरू जी के बाद 1955 से 1959 तक यूएन घेबर ने कांग्रेस की बागडोर संभाली और 1959 में श्रीमती इंदिरागांधी ने पहली बार कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ली थी। इसके बाद 1978 से 1984 तक भी वही
अध्यक्ष रही। इस बीच नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1964, के कामराज (1964 से 1968), एस निजलिंगप्पा (1968 से 1969), पी. मेहुल (1969 से 1970), बाबू जगजीवन राम (1970 से 1972) ने कांग्रेस का नेतृत्व किया। 1972 में डा. शंकर दयाल शर्मा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया जो बाद में राष्ट्रपति हुए और 1975 में देवकांत बरूआ को पार्टी की कमान दे दी गयी। श्री बरूआ एक साल तक ही अध्यक्ष रह पाये और 1978 में श्रीमती इंदिरागांधी ने प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष दोनों पद अपने पास कर लिये। श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या (1984) के बाद राजनीति से अरूचि रखने वाले राजीव गांधी को कांग्रेस की बागडोर मजबूरन संभालनी पड़ी क्योंकि उनके छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो चुकी थी। राजीव गांधी को साफ-सुथरे नेता के रूप में ख्याति मिली। वह 1985 से 1991 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उस समय जो रिकार्ड बनाया था, वह आज तक टूट नहीं पाया है। भारत को कम्प्यूटर तकनीकी देने का श्रेय राजीव गांधी को ही जाता है और ग्राम पंचायतों को आत्म निर्भर बनाने की शुरूआत भी उन्होंने ही की थी। अमिताभ बच्चन उनके दोस्त थे और उन्हें भी वह राजनीति में घसीट कर ले आये। बताते हैं कि इसी दोस्ती के चलते राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह उनसे नाराज हो गये थे और उन्होंने बोफोर्स दलाली का मुद्दा उठाकर कांग्रेस को तोड़ दिया। इसके बाद भी 1991 से 1992 के बीच पंडित कमला पति त्रिपाठी कांग्रेस की बगडोर संभालते रहे। 1992 में राजीव गांधी की हत्या हो गयी तो पीवी नरसिंह राव कांग्रेस अध्यक्ष के साथ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वह 1996 तक अध्यक्ष रहे और फिर सीताराम केसरी को यह कुर्सी देदी गयी। सीताराम केसरी 1996 से 1998 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे और कांग्रेस मृतप्राय हो गयी थी तब श्रीमती सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस
अध्यक्ष की कुर्सी को यह कहकर संभाला था कि मेरे स्वर्गीय पति के सपने यूं ही नहीं बिखर जाएंगे और श्रीमती सोनिया गांधी ने सचमुच वह करिश्मा कर दिखाया जो कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता नहीं कर सकते थे। उन्होंने तमिलनाडु की तत्कालीन नेता जयललिता को तत्कालीन भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राजी किया और अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार गिर गयी। हालांकि समाजवादी पार्टी क ेअध्यक्ष मुलायम सिंह की महत्वाकांक्षा के चलते उस समय कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की सरकार नहीं बन पायी लेकिन श्रीमती सोनिया गांधी ने कांग्रेस को संजीवनी पिला दी थी जिससे उसमें भरपूर जान आ गयी। इसके बाद तो श्रीमती सोनिया गांधी ने कांग्रेस को एक मजबूत गठबंधन प्रदान करके 2004 में यूपीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी जिसने लगातार दो कार्यकाल पूरे किये। एक दर्जन से ऊपर राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार बनी थी।
इस प्रकार कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सबसे बड़ा कार्यकाल श्रीमती सोनिया गांधी (1998 से 2017) का रहा है और कांग्रेस का सबसे बुरा पतन भी इसी काल में रहा जब 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 46 सांसद मिल पाये। भाजपा ने एक-एक करके सारे राज्य भी कांग्रेस से छीन लिये और मात्र पांच राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। राहुल गांधी को बहुत बेहतरीन अवसर भी मिला था जब वह अपने को एक अच्छे नेता के रूप में साबित कर सकते थे। यूपीए सरकार के 10 साल में उन्होंने कभी भी इस तरह की मेहनत नहीं की जैसी गुजरात में करके वह चर्चित हुए हैं। अब यूपीए को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गयी हे। कांग्रेस के कई युवा जुझारू नेता जैसे सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि उनका साथ तहेदिल से देंगे लेकिन उनको दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं से अपना पीछा छुड़ाना होगा। कांग्रेस को इस समय भाजपा के नरेन्द्र मोदी और अमितशाह से मुकाबला करना पड़ रहा है जो सियासत के अखाड़े में किसी की भी पटकनी देने की क्षमता रखते हैं। गुजरात के नतीजे को लेकर नहीं, गुजरात के समर को उन्हें याद रखना होगा। क्योकि दिनकर ने ठीक ही कहा है –हार और क्या जीत वीरता की पहचान समर है। सच्चाई पर चलके हारकर भी न हारता नर है।। (हिफी)
