अमृता प्रीतम प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं जिन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी बराबर है। इन्होंने पंजाबी जगत में छ: दशकों तक राज किया। अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।
अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला पंजाब- (अब) पाकिस्तान मे हुआ था। बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वहीं पर हुई। इन्होंने पंजाबी लेखन से शुरुआत की और किशोरावस्था से ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू किया। अमृता जी 11 साल की थी तभी इनकी माताजी का निधन हो गया, इसलिये घर की जि़म्मेदारी भी इनके कंधों पर आ गयी। ये उन विरले साहित्यकारों में से है जिनका पहला संकलन 16 साल की आयु में प्रकाशित हुआ। फिर आया 1947 का विभाजन का दौर, इन्होंने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत कऱीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं।
विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली में आ बसा। अब इन्होंने पंजाबी के साथ साथ हिन्दी में भी लिखना शुरू किया। इनका विवाह 16 साल की उम्र में ही एक संपादक से हुआ, ये रिश्ता बचपन में ही मां बाप ने तय कर दिया था। यह वैवाहिक जीवन भी 1960 में, तलाक के साथ टूट गया। 1960 में अपने पति से तलाक के बाद, इनकी रचनाओं में महिला पात्रों की पीड़ा और वैवाहिक जीवन के कटु अनुभवों का अहसास को महसूस किया जा सकता है। विभाजन की पीड़ा को लेकर इनके उपन्यास पिंजर पर फि़ल्म भी बनी थी, जो अच्छी ख़ासी चर्चा में रही। इन्होंने लगभग 100 पुस्तकें लिखीं और इनकी काफ़ी रचनाएं विदेशी भाषाओं में भी अनुवादित हुई हैं।
अमृता प्रीतम की रचनाएँ कहानी संग्रह सत्रह कहानियाँ सात सौ बीस क़दम 10 प्रतिनिधि कहानियाँ चूहे और आदमी में फ़कऱ् दो खिड़कियाँ ये कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं उपन्यास कैली कामिनी और अनीता यह कलम यह कागज़़ यह अक्षर ना राधा ना रुक्मणी जलते बुझते लोग जलावतन पिंजर संस्मरण कच्चा आँगन एक थी सारा कविता संग्रह अमृत लहरें 1936 जिन्दा जियां 1939 ट्रेल धोते फूल 1942 ओ गीता वालियां 1942 बदलम दी लाली 1943 लोक पिगर 1944 पगथर गीत 1946 पंजाबी दी आवाज़1952 सुनहरे 1955 अशोका चेती 1957 कस्तूरी 1957 नागमणि 1964 इक सी अनीता 1964 चक नाबर छ्त्ती 1964 उनीझा दिन 1979 आत्मकथा अक्षरों के साये रसीदी टिकट सम्मान और पुरस्कार।
अमृता जी को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार; अन्तर्राष्ट्रीय और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार। वे पहली महिला थी जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थीं जिन्हें 1969 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी पुरस्कार 1956 पद्मश्री 1969 डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर दिल्ली यूनिवर्सिटी- 1973 डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर जबलपुर यूनिवर्सिटी- 1973 बल्गारिया वैरोव पुरस्कार बुल्गारिया – 1988 भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार 1982 डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987 फ्ऱांस सरकार द्वारा सम्मान 1987 पद्म विभूषण 2004 ।
अमृता प्रीतम ने लम्बी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर, 2005 को अपने प्राण त्यागे। वे 86 साल की थीं और दक्षिणी दिल्ली के हौज़ ख़ास इलाक़े में रहती थीं। अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएँ, कहानियाँ, नज़्में और संस्मरण सदैव ही हमारे बीच रहेंगे। अमृता प्रीतम जैसे साहित्यकार रोज़ रोज़ पैदा नहीं होते, उनके जाने से एक युग का अन्त हुआ है। अब वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका साहित्य हमेशा हम सब के बीच में जि़न्दा रहेगा और हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। अमृता प्रीतम प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं जिन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी बराबर है। इन्होंने पंजाबी जगत में छह: दशकों तक राज किया। अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण भी प्राप्त हुआ। एजेन्सी