हुमायूँ मुगल शासक थे। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ के पास साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का योगदान है। बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने 29 दिसम्बर 1530 में भारत की राजगद्दी संभाली और उसके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों पर 1530-1540 और फिर 1555-1556 तक रहा।
शेरशाह सूरी शेरशाह ने बेलग्राम के युद्ध में पराजित कर दिया था। हुमायूँ का निर्वासन का कुछ समय काबुल सिंध अमरकोट में बिताया अंत में ईरान के शासक तहमास्य के पास शरण ली । ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। 1555 में शेरशाह के अधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली आगरा पर अधिकार कर लिया।
हुमायूँ की जीवनी का नाम हुमायूँनामा है जो उनकी बहन गुलबदन बेग़म ने लिखी है। इसमें हुमायूँ को काफी विनम्र स्वभाव का बताया गया है । वह वीर, उदार और भले थे लेकिन बाबर की तरह कुशल सेनानी और निपुण शासक नही बन सके थे । तख़्त पर बैठने के बाद यह हुमायूँ का दुर्भाग्य ही था की वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सके । 1556 में “दीनपनाह” भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मृत्यु हो गयी।हुमायूँ के बारे में इतिहासकार लेनपुल ने कहा है की, “हुमायूँ गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया, ठीक उसी तरह, जिस तरह तमाम ज़िन्दगी गिरते पड़ते चलता रहा था”।