के पी सक्सेना हिन्दी व्यंग्य और फिल्म पटकथा लेखक थे। साहित्य जगत में उन्हें केपी के नाम से अधिक लोग जानते थे।उनकी गिनती वर्तमान समय के प्रमुख व्यंग्यकारों में होती है। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के बाद वे हिन्दी में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले व्यंग्यकार थे।
के पी सक्सेना का पूरा नाम कालिका प्रसाद सक्सेना था । के पी सक्सेना का जन्म 13 अप्रैल 1932 में बरेली में हुआ था,उनके पिताजी शम्भू सरन सक्सेना ,फिल्म निर्माता मुज़्ज़फर अली के पिता सज्जाद अली की रियासत कोटवारा (लखीमपुर )के दीवान हुआ करते थे और घोड़े से गिरकर उनकी मृत्यु हुई थी,उस वक़्त के पी सक्सेना की उम्र उम्र मात्र नौ वर्ष की थी । ये परिवार के लिए बड़ा सदमा था, उनकी माँ दुर्गादेवी की उम्र उस वक़्त सिर्फ अट्ठाइस वर्ष की थी । उनकी माँ उन्हें लेकर बरेली से लखनऊ अपने भाई के पास आ गयीं । के पी सक्सेना के व छोटे भाई अनिल के पालन पोषण का दायित्व मामा श्री दुर्गा दयाल और उनकी पत्नी ने उठाया । मामा मामी की अपनी कोई संतान नहीं थी और दोनों भाइयों की देख भाल अपनी संतान के समान ही करी । मामा मामी से मिले इस निःस्वार्थ प्यार और सहारे के लिये के वे आजीवन उनके आभारी रहे । केपी के मामा रेलवे में नौकरी करते थे। केपी ने वनस्पतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और कुछ समय तक लखनऊ के एक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। बाद में उन्हें उत्तर रेलवे में सरकारी नौकरी के साथ-साथ उनकी पसन्द के शहर लखनऊ में ही पोस्टिंग मिल गयी। इसके बाद वे लखनऊ में ही स्थायी रूप से बस गये। उन्होंने अनगिनत व्यंग्य रचनाओं के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए कई नाटक और धारावाहिक भी लिखे। बीबी नातियों वाली धारावाहिक बहुत लोकप्रिय हुआ। उनकी लोकप्रियता का अन्दाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि था कि मूलत: व्यंग्य लेखक होने के बावजूद उन्हें कवि सम्मेलन में भी बुलाया जाता था।
उन्होंने लखनऊ के मध्यवर्गीय जीवन को लेकर अपनी रचनायें लिखीं। उनके लेखन की शुरुआत उर्दू में उपन्यास लेखन के साथ हुई थी लेकिन बाद में अपने गुरु अमृत लाल नागर की सलाह से हिन्दी व्यंग्य के क्षेत्र में आ गये। उनकी लोकप्रियता इस बात से ही आँकी जा सकती है कि उनकी लगभग पन्द्रह हजार प्रकाशित फुटकर व्यंग्य रचनायें हैं जो स्वयं में कीर्तिमान है। उनकी पाँच से अधिक फुटकर व्यंग्य की पुस्तकों के अलावा कुछ व्यंग्य उपन्यास भी छप चुके हैं। भारतीय रेलवे में नौकरी करने के अलावा हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के लिये व्यंग्य लिखा करते थे। उन्होंने हिन्दी फिल्म लगान, हलचल और स्वदेश की पटकथायें भी लिखी थी। उन्हें 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे कैंसर से पीड़ित थे।
जीवन के अन्तिम समय में उन्हें जीभ का कैंसर हो गया था जिसके कारण उन्हें 31 अगस्त 2013 को लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। परन्तु इलाज से कोई लाभ न हुआ और आख़िरकार उन्होंने 31 अक्टूबर 2013 को दम तोड़ दिया था।एजेन्सी।