पुण्य तिथि पर विशेष
रूबी मेयर्स (जन्म 1907 – मृत्यु 10 अक्टूबर 1983) 1930 के दशक में सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री थी। 1930 के दौर में सुलोचना इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की शीर्ष अभिनेत्री थीं। उन्होंने शुरुआत तो अवाक फ़िल्म के समय से की लेकिन बोलती फिल्मों के दौर की शुरुआत में भी उनका सिक्का फिल्म इंडस्ट्री पर खूब चला। हिन्दी सिनेमा में विशेष योगदान के लिए 1973 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अवाक फिल्मों के दौर में ही सुलोचना के खाते में कई हिट फिल्में थीं। बोलती फिल्मों के आने के बाद सुलोचना का करियर थोड़ा ठहर गया। रूबी मेयर्स यहूदी थीं और उन्हें ‘हिन्दुस्तानी’ भाषा बहुत अच्छे से नहीं आती थी। बोलती फिल्मों के आने के साथ ही डायलॉग बोलने की दक्षता जरूरी हो गई। ये रूबी मेयर्स के करियर के लिए एक धक्का था। कुछ वक्त ऐसे ही चला, मगर फिर रूबी मेयर्स ने हार ना मानने का फैसला लिया। उन्होंने एक साल का ब्रेक लेकर हिन्दुस्तानी धड़ल्ले से बोलने की तालीम ली और फिर वापसी की। सबसे पहले उन्होंने 1920 के दौरान बनी अपनी फिल्मों का रीमेक 1930 के दौरान रिलीज किए। सभी फिल्में बहुत सफल हुईं और रूबी मेयर्स फिर टॉप तक पहुंच गईं। मगर 1940 से सुलोचना के करियर में ढलान जो शुरू हुआ तो फिर वह संभल नहीं सकीं। नई अभिनेत्रियों के सामने रूबी मेयर्स मुकाबला नहीं कर सकीं। चरित्र भूमिकाओं के सहारे उन्होंने वापसी की कोशिश की लेकिन फिर कभी हालात पहले जैसे ना हो सके।
सुलोचना (रूबी मेयर्स) ने अनारकली नाम की तीन फिल्में कीं। तीनों एक ही कहानी का रीमेक थीं। पहली अनारकली, जिसमें सुलोचना मुख्य अभिनेत्री थीं, अवाक फिल्मों के दौर में बनी, जब रूबी मेयर्स ने बोलती फिल्मों में वापसी की तो उन्होंने अपनी फिल्म अनारकली को फिर से बना कर फिर उसमें लीड रोल किया और फल्मि जबरदस्त चली। तीसरी अनारकली उनके हिस्से आई तब, जब वह अपने खत्म होते करियर को संभालने की कोशिश कर रही थीं, इस अनारकली से उन्होंने वापसी की, लेकिन अनारकली नहीं, सलीम की मां के रोल में। सिनेमा क्वीन टाइपिस्ट गर्ल (1926) वाइल्डकैट ऑफ बॉम्बे (1927) माधुरी अनारकली (1928) हीर रांझा इन्दिरा बी ए (1929) सुलोचना (1933) बाज (1953) नील कमल (1968) खट्टा मीठा (1978)रूबी मेयर्स की लोकप्रियता का हाल ये था कि एक आयोजन के मौके पर खादी एग्जिबिशन इनॉगरेट करते हुए महात्मा गांधी पर बनी एक शॉर्ट फिल्म दिखाए जाते वक्त, आयोजकों ने उसके साथ ही फिल्म माधुरी (अवाक दौर की फिल्म) से सुलोचना का एक प्रसिद्ध नृत्य दृश्य के कुछ साउंड इफेक्ट ऐड करके चला दिया। कहा जाता है कि सुलोचना को उन दिनों बॉम्बे के गवर्नर से भी ज्यादा पैसे मिला करते थे, ये रकम थी 5000 रुपए। वह इतना कमाने वाली इकलौती अभिनेत्री थीं। सुलोचना के पास एक शेवरोले 1935 थी, जिसे वह खुद चलाती थीं। सुलोचना और डी बिलीमोरिया (अवाक फिल्मों के सुपरस्टार) का अफेयर बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1933 से 1939 के बीच सुलोचना ने सिर्फ बिलीमोरिया के साथ फिल्में कीं। इसके बाद दोनों में दूरियां आ गईं।एजेन्सी।