`दीपावली पर्व की पांचवीं श्रृंखला में कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भइया दूज का पर्व मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन यम की बहन यमुना ने अपने भाई को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया और भाई यम ने बहन से इच्छानुसार वर मांगने को कहा तो यमुना ने यमराज से मांगा कि इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके मिष्ठान्न खिलाएं तो वह दीर्घायु हो। इसी के बाद से भइया दूज का पर्व मनाया जाता है। वास्तव में भाई के प्रति यह बहन का स्नेह है और अपने भाई की दीर्घायु के लिए वह लड़की शादी होने के बाद भी कामना करती है, जिसे पराया धन कहा जाता है। कुमारी और विवाहिता सभी भइया दूज की पूजा करती हैं। इस दिन प्रात:काल उठाकर चंद्रमा के दर्शन करना चाहिए और जहां तक संभव हो तो यमुना जी में स्नान करें। यमुना जी में स्नान नहीं कर पाते हैं तो किसी भी पवित्र सरोवर या घर पर शुद्ध जल से स्नान करें। इसके बाद भाई दूज के लिए चावल के आटे के घोल से भाइयों के साथ चन्द्र-सूर्य के चित्र बनाकर पूजा करकें भाइयों को भोजन के लिए निमंत्रित करना चाहिए। भाई को भी वस्त्र आदि से बहन का सत्कार करना चाहिए।
भाईदूज या भैया दूज नामक इस प्रेम पर्व पर बहन अपने भ्राता की सुख-समृद्धि, दीर्घायु प्राप्ति की मंगल कामना करती है। भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इसके अनेक नाम मिलते हैं। गुजरात में भाई बीज, बंगाल में भाईफोटा, पंजाब में टिक्का, महाराष्ट्र में भाऊ बीज नाम से यह प्रसिद्ध है। नेपाल में इसे टीका नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां बहनें अपने भाई की समृद्धि शांति और सुरक्षा के लिये यम के शीश का प्रतीक अखरोट द्वार के चौखट पर तोड़कर बाहर फेंकती हैं। यह अखरोट हिरण्यकश्यप के सिर का प्रतीक है। लोक मान्यता में चौखट पर वध करने की परम्परा विद्यमान है। इस पर्व पर बहनें उपवास व्रत रखकर अपने-अपने आंगन में भैयादूज का माँअणे बनाती हैं। इस त्योहार में ऋषि मार्कण्डेय, यमुना तथा यमराज का अनुपम अंकन आकर्षक लगता है। अपने भ्राताओं के सुखमय जीवन, समृद्धि, दीर्घायु आदि की मंगल कामना होती है। पूजा के बाद पारम्परिक कथाओं की लोक मान्यताएं प्राप्त होती हैं।
ब्रह्मपुराण, स्कन्द पुराण में यह पर्व यम द्वितीया नाम से प्रसिद्ध है। दिनकर तनया यमुना द्वारा अपने भाई यम की दीर्घायु के लिये विधाता से विनम्र प्रार्थना इसी पर्व पर की गयी थी। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार यम देवता पर सारे विश्व के शासन का भार पड़ता रहा। आरम्भ में यम देवता इससे प्रसन्न थे। परन्तु बाद में वे ऊबते चले गये। इसी मध्य दीपावली का महापर्व आ गया। छोटी बहन यमुना ने अपने ज्येष्ठ भ्राता यमदेव को अपने घर पर टीका लगवाने का निमंत्रण दिया। यम के उपस्थित होने पर यमुना ने प्रसन्न भाव से भरपूर सम्मान प्रदान किया। इसी समय अपनी बहन के विमल भाव को देखकर यमदेव ने वरदान दिया कि जो भी भ्राता आज के दिन यमुना स्नान कर अपनी बहन के कर कमलों से निर्मित भोजन करेगा, वह कभी नरकगामी नहीं होगा। इसीलिए यमुना स्नान का महत्व बढ़ गया।
प्रीति के पर्व भैयादूज के पावन दिन बहन और भ्राता आकर यमुना में स्नान करते हैं। मथुरा पहुंचकर पुण्य पाते हैं। लोक श्रुति के अनुसार इस पर्व पर यमुना के किनारे बहन के हाथों निर्मित जो भाई भोजन करता है, उनका स्वास्थ्य, बल बढ़ता है साथ ही आयु की वृद्धि भी होती है। यमुना तट पर इस परम्परा के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। पाप-पुण्य की सूची बनाने वाले चित्रगुप्त तथा पापों का कठोर दण्ड प्रदान करने वाले यमदेव के साथ यमदूतों की अर्चना की जाती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है।
इस पर्व की पारम्परिक कथाओं में एक प्रचलित कथा इस प्रकार से भी बतायी जाती है। भातृ द्वितीया का पर्व आने वाला था। एक परिवार के साले और बहनोई परस्पर शत्रुता का भाव रखते थे। बहन ससुराल में थी। बहनोई ने अपने साले को निमंत्रण दिया कि यदि तुम्हें अपनी बहन से आत्मीयता हो तो भैया दूज पर टीका लगवाने जरूर आना। तुम्हारी प्रतीक्षा मैं तलवार के साथ करूंगा।
भाई बहन से टीका लगवाने चल पड़ा। आने पर देखा कि बहन का पति तलवार लेकर प्रतीक्षा में खड़ा था। भाई ने कुत्ते का रूप धारण करके घर में पिछले द्वार से प्रवेश किया। बहन घर में माँअणे निर्मित करने के लिये हल्दी, चावल पीसती हुई सिसक रही थी। अपने पति के क्रोध को सोचकर वह चिंतित थी। अचानक कुत्ते को देख उसने बट्टा फेंक कर मारना चाहा। हाथ की रोली भी बट्टे में लगी थी। रोली भ्राता के भाल पर लग गयी। वह मनुष्य रूप में हो गया। बहन को आश्चर्य तो हुआ पर उसने विधि-विधान से टीका लगाया। भाई पुन: कुत्ते का शरीर धारण कर बाहर चला गया। भाई ने जब बहन के पति का चरण स्पर्ष किया। भाई के मस्तक पर टीका देखकर टीका लगवाने का रहस्य पूछा। पूरी बात सुनकर बहन के पति को दया आ गयी। उसने कहा कोई बहन न होने के कारण मैं यह पीड़ा अनुभव नहीं कर पाया। उसने पत्नी के भाई से क्षमा मांगकर इस पर्व की महिमा स्वीकार की। इससे बहन प्रसन्न हुई। सम्मानित कर बहन को आशीर्वचन दिया। अनुपम आत्मीय भाव का प्राचीनकाल का पर्व कपटरहित मधुर स्नेह का पावन पर्व है। (हिफी)