मुबारक साल गिरह-शर्मिला टैगोर की गणना अभिजात्य-वर्ग की नायिकाओं में की जाती है। हिन्दी फिल्मों की श्रेष्ठ अभिनेत्रियों में उनकी गिनती होती है। शर्मिला टैगोर का जन्म 8 दिसम्बर, 1946 को बंगाली परिवार में हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता गितेन्द्रनाथ टैगोर उस समय एल्गिन मिल्स की ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक,उप-महाप्रबंधक थे।
नवाब पटौदी से शर्मिला का विवाह 1968 में हुआ। बारात शर्मिला के कोलकाता के आवास पर आई थी। शादी के लिए छत पर शामियाना तान कर विशेष व्यवस्था की गई थी। शादी से पहले नवाब की अम्मी की इच्छा के अनुसार शर्मिला को कलमा पढ़ाकर मुस्लिम बनाया गया। उनका नाम रखा गया आयशा सुल्ताना। यह नाम या तो निकाहनामे पर इस्तेमाल हुआ या जमीन जायदाद के कागजातों में। हालांकि नवाब पटौदी के लिए और पूरी दुनिया के लिए वे अब तक शर्मिला टैगोर ही बनी रहीं। विवाह के बाद वे सैफ अली खान, सबा अली खान और सोहा अली खान की माँ बनी।
जब शर्मिला टैगोर की उम्र तेरह साल थी, तब सत्यजित राय ने अपनी फिल्म अपूर संसार में शर्मिला को मौका दिया। अपने श्रेष्ठ अभिनय से शीघ्र ही वह लोकप्रिय हो गईं। शर्मिला टैगोर की श्रेष्ठता के कारण सत्यजित राय ने उनके बॉलीवुड पदार्पण के बावजूद अपनी अगली फिल्मों में उन्हें अवसर दिए। इन फिल्मों में देवी,नायक,सीमा तथा अरण्येर दिने-रात्रि आदि प्रमुख थीं। सत्यजित राय के अलावा बांग्ला-फिल्मकार तपन सिन्हा, अजॉय कार और पार्थ चैधरी ने भी शर्मिला की प्रतिभा का उपयोग अपनी फिल्मों में किया।
बॉलीवुड में भी बांग्ला फिल्मकार शक्ति सामंत ने अपनी रोमांटिक फिल्म कश्मीर की कली (1964) में शर्मिला को विद्रोही कलाकार शम्मी कपूर के साथ पेश किया। शक्ति सामंत स्वयं अपराध फिल्मों की केटेगरी से अपनी इमेज बदलना चाहते थे। शर्मिला की ताजगी और गालों में गहरे पड़ने वाले डिम्पलों का हिन्दी दर्शकों ने खुले मन से स्वागत किया। इसके बाद की सावन की घटा फिल्म में शर्मिला ने छोटे कपड़े पहन कर सेंसेशन मचा दिया। एक अंग्रेजी फिल्म पत्रिका के कवर पर बिकनी में छपी उनकी तस्वीर अनेक लोगों को खासकर बंगाल के भद्रलोक को नागवार गुजरा। सेक्स-सिम्बल के रूप में शर्मिला का बॉलीवुड में प्रवेश सफल रहा। उस दौर के दर्शक निम्मी, मीना कुमारी, माला सिन्हा, वहीदा रहमान के परिचित चेहरों से बाहर आकर कुछ नया महसूस करना चाहते थे। शर्मिला ने सिर पर पल्लू धारण करने वाली और ललाट पर बड़ा-सा लाल टीका लगाने वाली नायिकाओं की परम्परा से हटकर कुछ नया किया था। इसके साथ ही फिल्मों में ग्लैमर का प्रवेश हो गया।
मुम्बइया माहौल में शर्मिला भाग्यशाली रही हैं। उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य, शक्ति सामंत, गुलजार तथा यश चोपड़ा जैसे निर्देशकों ने हाथों-हाथ लिया। इसके साथ ही शम्मी कपूर, शशि कपूर, संजीव कुमार, धर्मेन्द्र और राजेश खन्ना जैसे अभिनय के मंजे हुए कलाकार मिले। उन्हें कुछ फिल्में अमिताभ बच्चन के साथ भी करने का मौका मिला।
अच्छे डायरेक्टर, अच्छे विषय और अच्छे को-स्टार के कारण वह बॉक्स ऑफिस की पहली मांग बन गईं। उस समय के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ शर्मिला की जोड़ी काफी लोकप्रिय हुई। फिल्म आराधना,अमर प्रेम तथा सफर के जरिये रजतपट पर प्रेम-प्यार को नए तरीके से परिभाषित किया गया। राजेश खन्ना की सफलता के पीछे, गायक और अभिनेता किशोर कुमार की जादू भरी आवाज का बहुत बड़ा हाथ था। वह लाखों दिलों की धड़कन बन गए थे। आराधना का गीत मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…सुनकर देश का युवा दर्शक दीवाना हो गया। राजेश खन्ना का बगैर बटन का गुरु-कुर्ता और सुर्ख लाल कम्बल में लिपटी शर्मिला टैगोर। रोमांटिक माहौल में फिल्माया गया यह गीत रूप तेरा मस्ताना… सुनकर तमाम वर्जनाएँ टूटने लगी थीं। 1969 में बनी फिल्म आराधना अपने समय की सुपरहिट फिल्म थी। फिल्म अनुपमा और सत्यकाम ने भी शर्मिला को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। धर्मेन्द्र और ऋषिकेश मुखर्जी के साथ शर्मिला टैगोर की इन दो फिल्मों ने उनका हिन्दी में संजीदा रूप प्रस्तुत किया। इन फिल्मों को देखकर लगता है कि ये बंगाल में बनी हैं और हिन्दी में डब होकर आई हैं। पिता के दुलार से वंचित नायिका को नायक धर्मेन्द्र अपने शब्दों के माध्यम से सांत्वना देकर आत्मीय स्नेह की बौछार करते हैं। नायिका अपनी चुप्पी के जरिये मन की व्यथा-कथा आँखों के द्वारा प्रकट करती है। इसी तरह फिल्म सत्यकाम स्वतंत्र भारत के ईमानदार सपनों के बिखरने और टूटने की कहानी है। शर्मिला अपने पति का हर कदम पर साथ देती हैं। ऋषि दा की कॉमेडी फिल्म चुपके चुपके शेक्सपीअर के नाटकों के अंदाज वाली फिल्म है। आज तक इस कॉमेडी से आगे निकलने का साहस अनेक कॉमेडी फिल्में नहीं कर पाई हैं।
फिल्म फेयर पुरस्कार1969, 1970,राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 1976, 2004 में मिल चुका है।
1975 में शर्मिला की एक फिल्म मौसम आई। इस फिल्म की कहानी और सफल संगीत ने उन्हें सफलता की नई दिशाएँ दीं। फिल्म मौसम में शर्मिला की प्रतिभा का भरपूर उपयोग गुलजार ने किया। कमलेश्वर के उपन्यास आगामी अतीत पर आधारित इस फिल्म के नायक संजीव कुमार के जीवन में तब भूचाल आ जाता है, जब पहले प्रेम की बेटी अचानक नए घर में प्रवेश करती है। परिवार की सुख-शांति के तमाम समीकरण उलट-पुलट हो जाते हैं। गजल गायक भूपिंदर द्वारा गाई गजल- दिल ढूंढता है फिर वही.. और आशा भोंसले की नशीली आवाज में मेरे इश्क में लाखों लटके…तथा मदन मोहन का संगीत फिल्म को यादगार बनाता है। बासु भट्टाचार्य ने पति-पत्नी के जीवन पर तीन फिल्मों की ट्रायोलॉजी बनाई थी अनुभव, आविष्कार तथा गृह प्रवेश। इन फिल्मों में विवाह की राजनीति तथा मनोविज्ञान की तलाश है। इस त्रिकोण के चैथे कोण में आस्था फिल्म भी बाद में आकर जुड़ी। लेकिन सिनेमा पटरी से उतर चुका था। आविष्कार में शर्मिला अपने पति को यह समझाने में सफल रहती हैं कि विवाह के बंधन जब बिखरने लगे, तो साथ रहना बेमानी है। बंगला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार के साथ भी शर्मिला ने हिन्दी में अमानुष फिल्म की। शर्मिला टैगोर की अपनी समकालीन नायिकाओं रेखा, हेमा मालिनी, सायरा बानो, वहीदा रहमान और राखी से किसी प्रकार स्पर्धा कभी नहीं रही।। शर्मिला टैगोर की कुछ प्रमुख फिल्मों के नाम इस प्रकार हैं शर्मिला टैगोर की प्रमुख फिल्में 1966 अनुपमा देेवर 1967 एन इवनिंग इन पेरिस 1969 आराधना सत्यकाम तलाश 1970सफर 1971 अमर प्रेम बंधन छोटी बहू 1973 आविष्कार दाग 1974 अमानुष 1975 चुपके चुपके मौसम 1982 नमकीन 1983 दूसरी दुल्हन 1985 न्यू दिल्ली टाइम्स 2005 विरुद्ध 2006 ज्वैलरी बॉक्स 2007 एकलव्य फूल एन फाइनल 2009 तस्वीर 8 बाय 10 मार्निंग वॉक। अपने बच्चों के बड़े होने के बाद शर्मिला टैगोर ने कुछ परिपक्व चरित्र भूमिकाएँ निभाईं। शर्मिला फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं। उनके कार्यकाल में फिल्म सेंसरशिप को उदारता मिली। अपने पति नवाब पटौदी के निधन के बाद शर्मिला अकेली जरूर हो गई हैं,उनके पुत्र और फिल्म स्टार सैफ अली खान और दो पुत्रियाँ इनके साथ हैं।एजेन्सी